भारत में लोग बुलेट बाइक के इतने दीवाने क्यों हैं?

 भारत में लोग बुलेट बाइक के इतने दीवाने क्यों हैं?

अगर एके-47 राइफल एक मोटरसाइकिल होती तो उसका नाम बुलेट होता।

"आँख मूँद कर भरोसा" इस राइफल और इस बाइक का खास चरित्र है।

माइनस बीस डिग्री का तापमान हो या 45 डिग्री की भीषण गर्मी , बाढ़ बारिश से भीग जाए या रेत में दफन होकर बाहर निकले, कैसी भी परिस्थिति हो ये बाइक और ये बन्दुक दोनों बिना रुके चलेंगे।

ऐसे ही नहीं लोग इस बाइक पर अपने घर से लेह लद्दाख की यात्रा पूरी करके लौटते हैं।

[1] खास बात ये है की जहाँ बुलेट बाइक 1931 बे बनायी गयी वहीं [2] एके-47 सबसे पहले 1948 में आयी। यानि ये दोनों उस दौर में बने जब उपकरण ऐसे बनाये जाते थे जो कम से कम 50 साल साथ निभाएँ।

जहाँ दूसरी बाइकों में प्लास्टिक की सजावट रहती है वहीं बुलेट आगे से पीछे तक लोहे का घोड़ा लगता है। इसके एक एक पुर्जे को आप एके-47 की तरह बाहर से ही देख सकते हो जो इसे स्पष्टवादी बनाता है और किसी का ये गुण लोगों को बहुत भाता है।

इसको चलाते समय निकलने वाली आवाज जहाँ सामने वालों को दूर से ही परे हटने को इत्तला करती है वहीं इसके ढांचे में उतपन्न होने वाले तालबद्ध कम्पनों की तरंगें चालक के रोम रोम में आत्मविश्वास की धारा संचारित करतीं हैं।

कुल मिलाकर वाजिब दाम पर उपलब्ध ये बाइक आदमी को आराम,भरोशा,सुरक्षा,आत्मविश्वास ,इज्जत व सबसे बड़ी चीज "पूर्ण रूप से संतुष्टि" का एहसास कराती है।

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